प्रश्न 7. लहना के गाँव में आया तुर्कों मौलवी क्या कहता था?
उत्तर- श्री चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ द्वारा लिखित कहानी-‘उसने कहा था’-प्रथम विश्व युद्ध
की पृष्ठभूमि पर आधारित है। तुर्की मौलवी लहना सिंह के गाँव आया था और जर्मनी के पक्ष में
बोलता था। वह कहता था कि जर्मनी वाले पंडित हैं। वेद पढ़कर विमान चलाने की विद्या जान
गए। वे हिन्दुस्तान आ जाएँगे तो गौ-हत्या बन्द कर देंगे। वह कहता कि ब्रिटिश सरकार का राज्य जाने वाला है, इसलिए डाकखाने से पैसा निकाल लो।
प्रश्न 8. “बातचीत के संबंध में बेन जॉनसन और एडिसन के क्या विचार हैं ?
उत्तर-‘बाचचीत’ शीर्षक निबंध के लेखक श्री बालकृष्ण भट्ट ने ‘बातचीत’ के संदर्भ में
पाश्चात्य लेखक बेन जॉनसन और एडिसन के विचारों का उद्धरण भी प्रस्तुत किया है। बेन जॉनसन का कथन है कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है। अर्थात् जब तक व्यक्ति बोलता नहीं उसके गुण-दोष का पता नहीं चलता। बाणी से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। एडिसन का मत है कि असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है अभिप्राय यह कि बातचीत में जब मात्र दो व्यक्ति होते हैं तभी अपना दिल एक-दूसरे के सामने खोलते हैं।
प्रश्न 9. अगर हमें वाक् शक्ति न होती तो क्या होता?
उत्तर- वाक्शक्ति मनुष्य को पशु से भिन्न बनाता है। यदि मनुष्य के पास वाशक्ति नहीं
होता तो वह पशुवत् होता। वाक्शक्ति के कारण ही मनुष्य परस्पर विचारों का आदान-प्रदान कर पाया है। वह सभ्य और शिक्षित हुआ है। वाक् शक्ति ईश्वर प्रदत्त वरदान है। इसी शक्ति के कारण वह अपने विचारों को संप्रेषित करता है। भाषा की शक्ति मनुष्य को मनुष्य बनाया है।
प्रश्न 10. प्रगीत क्या है?
उत्तर- ‘गीत’ शब्द में ‘प्र’ उपसर्ग जोड़ने से ‘प्रगीत’ बना है। गीत वैसी कविताओं को कहते
हैं जो भाव आधारित होते हैं। इसमें व्यक्ति के हृदय की भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है।
गीत मन के उद्गार है। प्रगीत गीत का ही प्रतिरूप है, जिसमें नितांत वैयक्तिक और आत्मपरक भाव की अभिव्यक्ति होती है। नई कविता आंदोलन के कवियों ने बड़े सुन्दर प्रगीत लिखे हैं।
प्रगीत अपेक्षाकृत छोटे होते हैं। यह आख्यानक काव्य नहीं है। बल्कि मुक्तक काव्य है।
वस्तुतः प्रगीत गीत का ही नया कलेवर है।
प्रश्न 11. ‘आर्ट ऑफ कनवरशेसन’ क्या है ?
उत्तर- ‘आर्ट ऑफ कनवरशेसन’ का अर्थ है-वार्तालाप की कला’। ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’
के हुनर की बराबरी स्पीच और देख दोनों नहीं कर पाते। इस हुनर की पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वतमंडली में है। इस कला के माहिर व्यक्ति ऐसे चतुराई से प्रसंग छोड़ते हैं कि श्रोताओं के लिए बातचीत कर्णप्रिय तथा अत्यन्त सुखदायी होती है। सुहृद गोष्ठी इसी का नाम है। सुहृद गोष्ठी की विशेषता है कि वक्ता की वाक्चातुर्य का अभिमान या कपट कहीं प्रकट नहीं हो पाता तथा बातचीत की सरसता बनी रहती है। कपट और एक-दूसरे को अपने पांडित्य के प्रकाश से बाद में परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की सामग्री ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ का मूल-मूत्र होता है। यूरोप के लोगों का ‘आर्ट ऑफ कनवरशेसन’ जगत प्रसिद्ध है।